Pages

Thursday, September 26, 2019

अमानवीय बीज

सूखी लम्बी फूल की कतारे
लगा दी जाती है नकली पेड़ो के बीच
और साथ ही सज जाती है
असली पेड़ो से बनी मेज़ और कुर्सियां
इन पर बैठ कर कोई
बन जाना चाहता है
प्रेमचंद अपनी किताब का

वो सुनकर लिखना जानता है
उसे सुनाई देता है पंछी
पर उन पेड़ो पर पंछी दिखते नहीं
वो कल्पना कर लेता है
उसे सुनाई देती है हवा
पर बदन में जरा भी फड़फड़ाहट नहीं होती
वो कल्पना कर लेता है

वो लिखता है अनंत कल्पनाये
वो लिखता है अनंत अनुभव
वो लिखता है अनंत पन्ने
सब मात्र सुनकर
बिना महसूस किये
बिना देखे

इक दिन,
उसे सुनाई देती है
वास्तविक क्रंदन
डकारती हुई चीख
रोते हुए सांसो का उखड़ना

और वो सुनता है इन्हे
आँखे खोलकर अपने कानो से
इक बीज कही अँकुरित हो
मुस्कान की तरह निकलता है
उसके होठो से
अब उसे कल्पना के सहारे की जरुरत नहीं।