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Wednesday, August 26, 2020
हम में हमारापन
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ऐसा लगता है जिंदगी एक घने गलियों वाला शहर है और हम भटकते रहते है सही ठिकानो के लिए कुछ ठिकाने हमने बचपन में खोज लिए थे जिनके रस्ते अब तक कंठ...
Thursday, May 28, 2020
मुसाफिर
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(बहुत पहले की लिखी कविता) सड़के है सुनसान चला जा रहा एक इंसान पी के कुछ जाम अपने प्यार के नाम दूर कुछ रौशनी सी नज़र आ रही है जिसकी ...
करो बातें
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मुझसे करो बातें जो हो बारीक, महीन तुम्हारे बालों की तरह ! बुन दो जाल आसान सा, और मैं सुलझा लू सुबह होने तक फिर सो जाऊ तुम्हारा सव...
Wednesday, December 4, 2019
बड़े होकर सुधरना
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रोज़ ही तो शाम होती है रोज़ ही हम सपनो से थके लौटते है और रोज़ ही सपनो में खो जाते है बस इक एहसास की लत है जिसके बिना हर रोज़ अधूरा लगत...
तो गिरू क्यों ?
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मैं अजीब हूँ जो केवल वक़्त बर्बाद करना चाहता हूँ आबाद नहीं आबाद क्यों नहीं, ये मुद्दा है और मुद्दो के लिए वक़्त नहीं है जो चीज़े चले ...
Tuesday, December 3, 2019
सुराख़
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अभी कल ही तो देखा था उसे घर के आँगन में सुराख़ भरते वो सुराख़ जिसमे चीटियां रहती थी वो सुराख़ जिसमे अब चीटियां नहीं रहती वो सु...
तीव्रता कम हो गयी है
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जैसे तीव्रता कम हो गयी है प्यार करने की उदास होने की सबकी अब कुछ भी मुझे भीतर तक अनुभव नहीं होता बाकी, मन के समुन्द्र में जो...
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