घड़िया भी दिखाती है रास्ता मुझे
घने जंगलो के काली रात की
जलती लकड़ियों से गिर रही राख की
आग सी जल रही मेरे पहचान की
धुएं से घिरे आसमान की ...
इन सब के बीच लेटा मैं, अब भी
महसूस कर सकता हू
अपनी बहती-घुटती सांसो को
खामोश लोगो के मायूश चेहरे को
धुंध में चमक रही भुत भविष्य वर्तमान को
जंगलो से ऊपर उठने की चाहत लिए प्राण को...
और इन सब के बीच खड़ा मैं,अब भी
देख सकता हू
रूकती घड़ियो को
उगते सूरज को
मुस्कान लिए चेहरों को
नन्हे चुमते हाथो को
लटकती तस्वीर को...
क्यों की घड़िया ही दिखाती है रास्ता
हर शख्स को...
©Aditya Kumar