Wednesday, January 26, 2011

बेड़िया मेरे मन की

बुझा हुआ सा छुपा हुआ कोने में बैठा
एक परिंदा जो पर नहीं मार सकता
खुली हवा में रह कर भी
छुप गया हो कही
अपने ही बनाये घोसले में
मौका देख झाकता है
दूर कही
उस छोटे से सुराग से
गिर गिर आती है
आजाद मकड़िया
घूरता है उसे
ओझल होने तक
जब भी मन करता है उसे
घुमने का
धरती बादल के मिलन को चूमने का
अनायास ही लग आती है बेड़िया
मानो इन्हें पता हो
मेरी हर सोच !!
जैसे कर रही हो रखवाली
मेरे मधु मन का

©Aditya Kumar

Tuesday, January 4, 2011

जियो जिन्दगी

जियो जिन्दगी
हर पल हल छण
बिता है और बीतेगा

अगर रहे हो हार
तो करो पलटवार
मर मानो या ना मानो
पलटवार जाएगी बेकार
क्योकि सहनी पड़ती है सबको
जिन्दगी की मार
मानो इसे जंग
चाहे रिश्ते हो या न हो संग
करो बुलंद
अपने तमाशे अपने मृदंग
भूल के अतीत भूल के अंत
क्योकि ...
अंत का गवाह अतीत है
और उस अंत में हर शहीद की जीत है

सो जियो जिन्दगी
हर पल हर छ्ण
बिता है और बीतेगा

अगर टूट रही है आस
उठ रहा विश्वास
बेचैन हो रहा मन
बुझाने वर्षो की प्यास
तो घुमा लो एक नजर
अपने आस -पास
मिल जायेगा तुम्हे कोई
बैठा उदास
लिए सदियों की प्यास
जिसकी नहीं टूटी है आस
न उठा है विश्वास

सो जियो जिन्दगी
हर पल हर छ्ण
बिता है और बीतेगा

©Aditya Kumar

सर्द अँधेरी राते

आज दिन ही कुछ ऐसा है
सर्द अँधेरी रातो जैसा है

मन शुन्य की तलाश में
टकरा के इधर
टकरा के उधर
भटक रहा है
इस चार दिवारी में
रुक जाता है
कौंध उठता है
सुन के हर आवाज
इतनी स्पष्ट इतनी मधुर
बैठा है सोचने ,कोई नया विधुर
पछतावा दिन भर का
कोसने अपने आप को
बाकि रह गये है
चंद घंटे ही सोने को
सर में उठ रहे
वेदना सम - वेदना की लड़ाई में
पिस गया है मन कही

इंतज़ार अब भी है
किसी के आने का
छुपा रख्खा है अब तक
रोटिया लपेटे हुए
मार के किसी की भूख
देखने को ख़ुशी
तुम्हारे चेहरे पर

मन भी अब थक चूका है
सच कहू उब चूका है
चाहत है छुटकारे की
घबराईये नहीं
ये बीमारी है नींद न आने की

पर क्या करू

आज दिन ही कुछ ऐसा है
सर्द अँधेरी रातो जैसा है

©Aditya Kumar

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