आवाज बहुत सुनी सुनी है
फिर भी पहचान नही पाते है
ये कभी बोलती है
कभी बजती है
अन्तर समझ नही पाते है
करती रहती है प्रयास
हर दम , निरन्तर
ध्यान बटाने को
चिढ़ जाने को
या फिर.....
अपना अस्तित्व जताने को
अपना लोहा मनवाने को
घुल जाती है , मिल जाती है
दम तोड़कर
एक एहसास का चिन्ह छोड़कर
कि कहा है वो ज्ञानी मन
वो शिक्षा..
जिसने गाये थे गीत
मेरी ही आवाज मे
अन्दर से ठूँठ , बाहर से हरा
मत करो ऐसे बहाने यहाँ
क्यो कि ..
हमने सुना है तुम्हे कहते
"आवाज बहुत सूनी सूनी है "।।
© आदित्य कुमार