हर वक़्त कहता हु खुद से
की काम अभी अधूरा है
करना उसको पूरा है
और सपनो की गठरी में
बस अपनों का डेरा है
इतनी क्या जल्दी है तुझको
लूट कर कुछ को देने की
सरकार चुनी है काम कर रही
नयी योजना देने की
माना अभाव पड़ा है उन्हें घर
लालस है मुठ्ठी भर दाने की
पर तेरी उम्र पड़ी है अभी
दान कर पुण्य कमाने की
मैं जानता हूँ तू उदास हो जाता है
उन्हें देख कर उनका खास हो जाता है
पर बंधु इस जमाने की अलग ही रीति है
घर बार धन दौलत बस इनसे ही प्रीति है
की इस चक्कर में मत पड़ ,
ये जिंदगी भर का फेरा है
और सपनो की गठरी में
बस अपनों का डेरा है
विशेष : आपको ये आभास होना चाहिए की आपके और आपके परिवार के पास वो सब कुछ है जो भारत की 70 % आबादी के पास नहीं है ॥