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Wednesday, January 16, 2019

इतिहास का पत्थर

मैं जो हूँ
सदियों से खड़ा
अपनी मिटटी में गड़ा
धसा के पैर अपने घुटने तक
ना जाने कितने संग्राम लड़ा

अब सुनो मेरे पत्थरो की चीख
जो मांगते है भीख तुम पत्थरो से
कि हटा लो हथेलिया मेरे गर्दन से
तुम्हारा ये करुण स्पर्श, मेरे हित में नहीं

और चले जाओ मेरी खस्ता हालत से दूर
ताकि तिन-तिन  कर
अपने पत्थरो को खोकर
मेरे अपने पत्थरो को
मैं मर सकूं अपनी उम्र में

तुम नहीं जानते मेरे शरीर को
तुम्हारा मुझे पवित्र करना
मुझे मार देने जैसा होगा 

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