निगाहे दौड़ती रहती है
आसरा ढ़ूढती रहती है
कभी इधर कभी उधर
एक छोटी सी ज़मी का टुकड़ा
जहा बैठ सकू खुद को समेटकर
क्या मैंने पहना है
क्या मेरे पास है
एक गन्दी थैली प्लास्टिक की
वही खजाने खास है
ना देखती मैं कपड़ो को
ना देखती मोटर कार को
लालच की क्या परिभाषा दू
जब जीभ तरस गयी आचार को
शहनाई सुनु सड़को पर जब मैं
तो छलक आये संसार है
और कैसे करे याद वो औरत
जो विधवा और लाचार है
पेट का खेल तो सब जाने है
फिर भी सबने माऱा है
इक चमचमाती पाकिट नमकीन की
पेट बांध , घंटो निहारा है
जिन हाथो से दान दिए थे
उनको आज कैसे फैलाऊ
जो छुए तेरे फ़िल्मी दिल को
ऐसे बोल कहा से लाऊ
मिट्टी में सनी हूँ
मिट्टी का इंतज़ार है
बस य़ू ही न फेक देना
मैं हिन्दू हूँ
जलना मेरा भी अधिकार है
हमने भी लाये थे इलाईची दाने
अपने पल्लू में बांधकर
इन बूढी आँखों को देखो गौर से
नज़र आयेगी एक माँ तुम्हे
अपना सब कुछ हारकर
अपना सब कुछ हारकर
awesome !!!!! HATSOFF :)
ReplyDeleteBhai babba faad likhey ho :) :)
ReplyDeletebhai! faad hai!
ReplyDeletekafi umda kavita hai..
ReplyDeletesuperb sir....
ReplyDelete