नभ के तारे है बेचारे , जो खड़े निहारते है
जख्म मिटटी पर लगे जब , क्यों नहीं पुकारते है
वीरान सड़के , वीरान गलियां , टूटे फूल , सूखी कलियाँ
बस एक उत्सव इस जहाँ में , नोच - खचोट , रंगरलिया
ईक बची है अस्मत अब भी , क्यों नहीं उजारते है
नभ के तारे है बेचारे , जो खड़े निहारते है
गर्व वाली चोटी बांधे , ग्लानी वाली राह में
सब खड़े है मुकुट भिचे , बदलने की चाह में
बस भीष्म की मज़बूरी भाँति , बंद कमरों में हुंकारते है
नभ के तारे है बेचारे , जो खड़े निहारते है
कुछ करेंगे , अब करेंगे , सब करेंगे ,तब करेंगे
वो लड़ेंगे , वो मरेंगे , हम मरेंगे , तब लड़ेंगे
वाणी ऐसी रखने वाले , गलती कब स्वीकारते है
नभ के तारे है बेचारे , जो खड़े निहारते है
जख्म मिटटी पर लगे जब , क्यों नहीं पुकारते है
@आदित्य कुमार
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