मैं तुम्हे नहीं जानता
वैसे ही
जैसे भगवान को नहीं जानता
पर जानने की इच्छा रखता हूँ
मेरी इच्छा मेरी किताब की पहली भूमि है
जिसमे अपनेपन के बीज को रोपना है
और तमाम मौसमो के मुठ-भेड़ से बचाते हुए
उस हद तक पनपने देना है
जहा खड़ा रहता है वृक्ष
जहा खड़ा रहता है वृक्ष
अपने केचुओं, बेलो, चीटियों, कुकरमुत्तों सहित
वैसे ही
जैसे भगवान को नहीं जानता
पर जानने की इच्छा रखता हूँ
मेरी इच्छा मेरी किताब की पहली भूमि है
जिसमे अपनेपन के बीज को रोपना है
और तमाम मौसमो के मुठ-भेड़ से बचाते हुए
उस हद तक पनपने देना है
जहा खड़ा रहता है वृक्ष
जहा खड़ा रहता है वृक्ष
अपने केचुओं, बेलो, चीटियों, कुकरमुत्तों सहित
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