तुमने जब उस दिन अपने आँसुओ को मेरे सामने बड़ी तरलता से बहने दिया था, मैंने खुद को तुमसे थोड़ा ज्यादा नजदीक और गौरवान्वित महसूस किया था।
पर एकांत में तुम्हारे साथ, उस मार्मिक छण मे, मेरे तुम्हारे लिए मेरी सीमाओ, अधिकारों की लड़ाई और विश्लेषण की आपाधापी से जनित मेरा कुछ भी ना करने की निर्बलता का चोट काफी भीतर तक है और रहेगा।
तुम्हारे मेरे प्रति वास्तविक आचरण और मानसिक सोच से परे , तुम्हारे संग बिताये वो छण मेरे जीवन के प्रथम प्रसंगों में पत्थर की लकीर की तरह अंकित है.
प्रथम पक्ष के प्रथम प्रहर में ,
जब तुम सामने बैठ के रोई थी ।
बहुत अकुलाहट हुई थी मुझको ,
पर जाने तुम कैसे सोई थी ।
भावों की ज्वाला मन में लेकर ,
कुछ पास मैं तुम्हारे आया था ।
संकुचित मन की कायरता पर ,
बाद बहुत पछताया था ।
पर एकांत में तुम्हारे साथ, उस मार्मिक छण मे, मेरे तुम्हारे लिए मेरी सीमाओ, अधिकारों की लड़ाई और विश्लेषण की आपाधापी से जनित मेरा कुछ भी ना करने की निर्बलता का चोट काफी भीतर तक है और रहेगा।
तुम्हारे मेरे प्रति वास्तविक आचरण और मानसिक सोच से परे , तुम्हारे संग बिताये वो छण मेरे जीवन के प्रथम प्रसंगों में पत्थर की लकीर की तरह अंकित है.
प्रथम पक्ष के प्रथम प्रहर में ,
जब तुम सामने बैठ के रोई थी ।
बहुत अकुलाहट हुई थी मुझको ,
पर जाने तुम कैसे सोई थी ।
भावों की ज्वाला मन में लेकर ,
कुछ पास मैं तुम्हारे आया था ।
संकुचित मन की कायरता पर ,
बाद बहुत पछताया था ।
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