जिंदगी इन दिनों अजीब सी है
वक़्त आजकल ना मौका देता है , ना वक़्त
और देर हो जाती है
आभास के आभास होने तक।
बस कुछ शब्द उठते है
आते है , जाते है
ना कोई कम्पन होती है
ना कोई आवाज उठती है
बस धूल के कुछ कण
फिर से जम जाते है, जाने पहचाने कोनो में
और पहरा लगाने लगते है
मनचले, बदमाश तरंगे।
मानो ये हो चोर है और कोतवाल भी !!
-आदित्य
वक़्त आजकल ना मौका देता है , ना वक़्त
और देर हो जाती है
आभास के आभास होने तक।
बस कुछ शब्द उठते है
आते है , जाते है
ना कोई कम्पन होती है
ना कोई आवाज उठती है
बस धूल के कुछ कण
फिर से जम जाते है, जाने पहचाने कोनो में
और पहरा लगाने लगते है
मनचले, बदमाश तरंगे।
मानो ये हो चोर है और कोतवाल भी !!
-आदित्य
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