Thursday, June 7, 2018

मुबारक हो

आज जो लिखने बैठा हूँ
तो सोच रहा हूँ की
दिल उतार कर रख्खा कैसे जाता है।

"साहब, भूख लगी है , खाना दो"
क्या ये शायरी है
क्या आपको रुला सकती है
क्या इसे भारत भूषण से सम्मानित किया जा सकेगा
क्या इसे कोई पत्रिका प्रकाशित करेगी
क्या ये क्रन्तिकारी नहीं
क्या ये आप बीती नहीं
क्या ये वाक्य पूरा नहीं
क्या इसका व्याकरण ठीक नहीं
क्या आपकी आँखें डबडबा गयी
क्या दिल में कोई तीर लगा
क्या आप मोम की तरह नहीं पिघले

अगर आपके साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ
तो आपको वो फलाने की बोलें अच्छी क्यों लगी
आपने मेले से अजीम शायरों की किताबे क्यों खरीदी
आपकी आँखें वो सिनेमा देख के छलछला क्यों गयी थी
बड़ी शिद्दत से उस दिन आपने प्यार का नगमा सुना था
वाह - वाह कहते थके नहीं थे आप

और आज,
आज क्या हो गया आपको
किसी हसीन दुनिया का पिद्दा सा दर्द
जैसे दाल में नमक ज्यादा पड़ गया हो
जो चुटकी भर नमक ज्यादा लग रहा है
ठीक उतने की बड़े इलाके की शायरी सुनते है आप
मुबारक हो आपको अपना इलाका


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