रोज़ ही तो शाम होती है
रोज़ ही हम सपनो से थके लौटते है
और रोज़ ही सपनो में खो जाते है
बस इक एहसास की लत है
जिसके बिना हर रोज़ अधूरा लगता है
आदत पड़ गयी है
लत अच्छी नहीं होती
शायद वही लग गयी है मुझे
जब घूमता नहीं तो खो जाता हूँ
बहुत फिल्मी हो गया हूँ आजकल
जान जगहों पड़ अनजान चेहरों में
इक कहानी तलाशने लगता हूँ
बिलकुल सुराग वाले जासूस किरदार की तरह
चढ़ जाता हूँ खुद की निगाहो में
एकदम शराब की तरह
और तब तक उबलता रहता हूँ
रेत के टीलों पर
जब तक शब्द की हवा उड़ा नहीं देती
मैं मूर्ख या बेवक़ूफ़ नहीं, ढोंगी और डरपोक हूँ
भला खुद से भी भागने का कोई अंत होता है
बड़ा हूँ गया हूँ मैं
अब बस प्यार वाली डाँट खाता हूँ
चोट वाली डाँट से रोये एक अरसा हो गया है
काश,
काश कोई मेरी खातिर
मेरी खातिर, मेरी ही खातिर
मुझे एक जोरदार तमाचा मार दे दिल से
क्योकि ,
बचपन से आजतक बिन पिटे सुधरा नहीं हूँ
रोज़ ही हम सपनो से थके लौटते है
और रोज़ ही सपनो में खो जाते है
बस इक एहसास की लत है
जिसके बिना हर रोज़ अधूरा लगता है
आदत पड़ गयी है
लत अच्छी नहीं होती
शायद वही लग गयी है मुझे
जब घूमता नहीं तो खो जाता हूँ
बहुत फिल्मी हो गया हूँ आजकल
जान जगहों पड़ अनजान चेहरों में
इक कहानी तलाशने लगता हूँ
बिलकुल सुराग वाले जासूस किरदार की तरह
चढ़ जाता हूँ खुद की निगाहो में
एकदम शराब की तरह
और तब तक उबलता रहता हूँ
रेत के टीलों पर
जब तक शब्द की हवा उड़ा नहीं देती
मैं मूर्ख या बेवक़ूफ़ नहीं, ढोंगी और डरपोक हूँ
भला खुद से भी भागने का कोई अंत होता है
बड़ा हूँ गया हूँ मैं
अब बस प्यार वाली डाँट खाता हूँ
चोट वाली डाँट से रोये एक अरसा हो गया है
काश,
काश कोई मेरी खातिर
मेरी खातिर, मेरी ही खातिर
मुझे एक जोरदार तमाचा मार दे दिल से
क्योकि ,
बचपन से आजतक बिन पिटे सुधरा नहीं हूँ