Wednesday, August 24, 2011

अंत


अंत ही हर किसी की संपत्ति होती है
वो बुरी भी हो सकती है , अच्छी भी
वो किसी को रुला सकती है
एक बार
वो किसी को रुला सकती है
बार बार
पर जो रुलाये बार बार
मैं उस अंत की दुआ करता हूँ

"कितना बुरा " का कोई अंत नहीं होता
जिन्दगी और अंत के बीच
लगते है कई झूले
और उस पर झूलते
कई बिता देते है पूरी जिन्दगी
अपनी पूरी जिन्दगी !!
पर अंत उन्हें भी नसीब होती है

वो भयानक,भयावह,भयंकर
को साकार कर सकती है
वो भय के समुन्दर
को पार कर सकती है
वो रुलाती है हमें
हम रुलाते है उन्हें
पर जो रुलाये बार बार
मैं उस अंत की दुआ करता हूँ

खून, रिश्ते, घर, परिवार
शोषण ,लड़ाई, निर्णय ,अत्याचार
इन सब में भी
वो रहती है सजग ,स्थिर
तुम्हारे आँखों के सामने
हँसाने को ,रुलाने को
बेताब तुम्हे अपनाने को
पर जो रुलाये बार बार
मैं उस अंत की दुआ करता हूँ

अंत के निष्कर्ष पर
पहुचना नहीं आसान
पर जो पहुच गया
वो कहलाता नहीं इंसान

बेसब्री , बेताबी, बेचैनी ,इंतज़ार
तड़पन, घुटन, गुस्सा, अंधकार
ये सब रास्ते में खड़े
पर इनसे परे
वो खुद अपनाएगी तुम्हे
एक नन्हे शिशु की तरह
गोद में ले जाएगी तुम्हे
सबसे दूर ,बहुत दूर ....

और जब, तुम
परिस्थितियों से अनजान बच्चे की तरह
रोओगे अपनी जिद पर
ढ़ाढस ,सान्तवना ,सलाह, विचार
बहाने, तराने, प्रेम, अहंकार
सब कुछ देगी तुम्हे
पर हारकर ,तुम्हे एक बार
फिर वो रुलाएगी
पर जो रुलाये बार बार
मैं उस अंत की दुआ करता हूँ ॥


© आदित्य कुमार