Wednesday, February 11, 2015

कहा जुड़ते है लोग

शांत घाटो पे पसरा धर्म
गोल छतरी तले बैठे पण्डे
कड़ी धूप, बारीक़ धूल, मट्ट सीढ़िया
मैं और मेरी साइकिल ।।
शाम के साथ बढ़ते लोग
तुलसीदल, रोड़ी ले घूमता साधु
सजी धजी लाल-पीली दुकाने
बांस लगी झंडिया, आरती की तैयारी
लोक-परलोक कर्म धर्म के गीत
सवारी ताक रहे नाविक ।।
छोटी सी भीड़, प्रवचन देते बाबा
जोड़ो का उस पर जाने की अनबन
मंत्रो के साथ जीवंत होती हर चीज
एक पूरी दुनिया घूमती है मेरे इर्द-गिर्द
फिर भी कहा, कहा जुड़ते है लोग
 
-आदित्य