इस जमी पे जिन्दा हर जमीर हिलती है
तख्त पे लटकी वो तस्वीर हिलती है
हाथो में मचल रही इन रेखाओ का क्या ?
जब खुदा की लिक्खी तक़दीर हिलती है।
बुझा न सके वो चिंगारिया
शमशान में जलती आग को
दिखा न सके वो चिंगारिया
मेरे बुझते चिराग को
हमें तो पहले ही दफना दिया था
गैरो की मिटटी में
फिर भी उन अंतिम उखरती सासों में
हम ढूंढते रहे आपको,बस आपको
दीया तो दिया था उसने
उस रात भी
पिया था पिया के लिए हमने
उस रात भी
चुप तो हमभी नहीं बैठ सकते
तुम्हे गैरो के साथ देखकर
वो तो तुमने ही बिठा दिया था हमें
उस रात भी ।
©Aditya Kumar
sahi hai be....lage raho
ReplyDeletesahi likha hai
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