Sunday, November 21, 2010

आवाज एक चिता की

घड़िया भी दिखाती है रास्ता मुझे
घने जंगलो के काली रात की
जलती लकड़ियों से गिर रही राख की
आग सी जल रही मेरे पहचान की
धुएं से घिरे आसमान की ...

इन सब के बीच लेटा मैं, अब भी
महसूस कर सकता हू
अपनी बहती-घुटती सांसो को
खामोश लोगो के मायूश चेहरे को
धुंध में चमक रही भुत भविष्य वर्तमान को
जंगलो से ऊपर उठने की चाहत लिए प्राण को...

और इन सब के बीच खड़ा मैं,अब भी
देख सकता हू
रूकती घड़ियो को
उगते सूरज को
मुस्कान लिए चेहरों को
नन्हे चुमते हाथो को
लटकती तस्वीर को...

क्यों की घड़िया ही दिखाती है रास्ता
हर शख्स को...

©Aditya Kumar

1 comment: