Monday, July 4, 2011

उठती आवाजे

आवाज बहुत सुनी सुनी है
फिर भी पहचान नही पाते है
ये कभी बोलती है
कभी बजती है
अन्तर समझ नही पाते है

करती रहती है प्रयास
हर दम , निरन्तर
ध्यान बटाने को
चिढ़ जाने को
या फिर.....
अपना अस्तित्व जताने को
अपना लोहा मनवाने को

घुल जाती है , मिल जाती है
दम तोड़कर
एक एहसास का चिन्ह छोड़कर
कि कहा है वो ज्ञानी मन
वो शिक्षा..
जिसने गाये थे गीत
मेरी ही आवाज मे

अन्दर से ठूँठ , बाहर से हरा
मत करो ऐसे बहाने यहाँ
क्यो कि ..
हमने सुना है तुम्हे कहते
"आवाज बहुत सूनी सूनी है "।।

© आदित्य कुमार

1 comment:

  1. Nyc words Adi!!!
    N Congrats for ur placement @directi :)
    All The Best for ur future!!!

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