Wednesday, January 16, 2019

आगमन की प्रतीक्षा

मैं तुम्हे नहीं जानता
वैसे ही
जैसे भगवान को नहीं जानता
पर जानने की इच्छा रखता हूँ

मेरी इच्छा मेरी किताब की पहली भूमि है
जिसमे अपनेपन के बीज को रोपना है
और तमाम मौसमो के मुठ-भेड़ से बचाते हुए
उस हद तक पनपने देना है
जहा खड़ा रहता है वृक्ष

जहा खड़ा रहता है वृक्ष
अपने केचुओं, बेलो, चीटियों, कुकरमुत्तों सहित  

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