Wednesday, December 4, 2019

तो गिरू क्यों ?

मैं अजीब हूँ
जो केवल वक़्त बर्बाद करना चाहता हूँ
आबाद नहीं
आबाद क्यों नहीं, ये मुद्दा है
और मुद्दो के लिए वक़्त नहीं है

जो चीज़े चले नहीं उसे खीचू क्यों
जो चल रही है उसे रोकू क्यों

मैं जो आया हूँ, तो पूरा करूँगा अपना कोष
मुझे दिखती है दीवारे
दीवारे, दशकों पुरानी दीवारे
मैं दिवार भी तो हूँ
वो दिवार भी, जो भरे बाजार में
लोगो का पेशाब सूंघती है
या वो जिसे अनजाने में लोग खुरच देते है
मैं जो दिवार हूँ
अगर ढह नहीं रही तो गिरू क्यों ?

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