बुझा हुआ सा छुपा हुआ कोने में बैठा
एक परिंदा जो पर नहीं मार सकता
खुली हवा में रह कर भी
छुप गया हो कही
अपने ही बनाये घोसले में
मौका देख झाकता है
दूर कही
उस छोटे से सुराग से
गिर गिर आती है
आजाद मकड़िया
घूरता है उसे
ओझल होने तक
जब भी मन करता है उसे
घुमने का
धरती बादल के मिलन को चूमने का
अनायास ही लग आती है बेड़िया
मानो इन्हें पता हो
मेरी हर सोच !!
जैसे कर रही हो रखवाली
मेरे मधु मन का
©Aditya Kumar
अच्छा लिखते हो, शुभकामनायें !!
ReplyDeleteधन्यवाद..sir
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